क्या जलाएगी मुझे यह, राख झरती ठाँव मधुरे !
क्या जलाएगी मुझे यह, राख झरती ठाँव मधुरे !
कर सकेगी क्या चमन को, रेत डूबा गाँव मधुरे !
जब तलक तू साथ मेरे, जिंदगी की रहगुजर में-
चिलचिलाती धूप भी है,गुलमुहर-सी छाँव मधुरे !
अशोक दीप
क्या जलाएगी मुझे यह, राख झरती ठाँव मधुरे !
कर सकेगी क्या चमन को, रेत डूबा गाँव मधुरे !
जब तलक तू साथ मेरे, जिंदगी की रहगुजर में-
चिलचिलाती धूप भी है,गुलमुहर-सी छाँव मधुरे !
अशोक दीप