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14 Jun 2024 · 1 min read

दो अनजाने मिलते हैं, संग-संग मिलकर चलते हैं

दो अनजाने मिलते हैं, संग-संग मिलकर चलते हैं
सुख-दुःख के साथी हैं दोनों, गिरते और संभलते हैं।।

पति का नाम भरोसा है, पत्नी का नाम समर्पण
पति-पत्नी एक दूजे पर कर देते हैं सब अर्पण।।

पति के उदास होते ही पत्नी के आँसू निकलते हैं
सुख-दुःख के साथी हैं दोनों, गिरते और संभलते हैं।।

नोंक-झोंक भी इस रिश्ते की एक निशानी होती है
रूठने और मनाने से मशहूर कहानी होती है।।

जीवन रूपी गाड़ी के दो पहिये कभी ना बदलते हैं
सुख-दुःख के साथी हैं दोनों, गिरते और संभलते हैं।।

‘हम दो-हमारे दो’ की घड़ी सुहानी आती है
पुत्र पिता का, पुत्री माँ का बचपन फिर से लाती है।।

सोलह संस्कारों में ‘विवाह’ को सब शास्त्र श्रेष्ठ समझते हैं
सुख-दुःख के साथी हैं दोनों, गिरते और संभलते हैं।।

शादी का लड्डू वास्तव में अपना असर दिखाता है
खानेवाला पछताता है और न खानेवाला ललचाता है।।

खाकर पछताने में ही फ़ायदा है, बड़े-बुज़ुर्ग यह कहते हैं
सुख-दुःख के साथी हैं दोनों, गिरते और संभलते हैं।।

विवाह किया है तो विश्वास करना अपने जीवनसाथी पर
कान देखना, कौआ नहीं, बात-बात पर मत जाना लड़।।

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