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8 Jun 2024 · 2 min read

प्रेम की गहराई

तू चाँदनी रातों का सुकोमल आँचल, मैं धरा का अतृप्त सावन।
तेरी मुस्कान ज्यों नवपल्लवित पुष्प, मैं भौंरा, मधुमय मनभावन ।
मैं गुलकंद सुपारी , तू मीठा बनारसी पान ।
तेरी वाणी कोमल, झंकारित मेरे हिरदय वीणा की तान ।
तू शांत सरिता की शीतल धारा, मैं पवन का झोंका बावरा।
तेरे चेहरे की चमक सूर्योदय की रश्मि सी , में सुबह का आसरा ।
तू गुलाब की पंखुड़ी, मैं ओस का कण, तेरे स्पर्श से जीवन महका ।
मैं कृष्ण की बाँसुरी, तू राधा का नूपुर, प्रेम गीत से मन मंजुल चहका ।
तेरी आँखें दीपक जैसी, अंधेरों में रोशन मेरी राहें ।
मैं सागर की गहराई, तू शांत लहर सी फैलाए बाहें ।
तू कस्तूरी मृग नयना, मैं चंचल हिरण, तेरी खोज में अविरत।
मैं हूँ रंग शर्बतों सा, तू मीठे झील का पानी, अमृत।
तू मेरे जीवन की संगीत, मैं तेरे हृदय की धड़कन,
में चकोर ,तु चाँद, में गले का हार ,तु हाथों का कंगन ।
तू कोमल कमलिनी, जलधि की शांति परिणी,
मैं हंस तट का अवलोकन करता।
तेरी हँसी किरणें, उदित सूरज सी, मेरा मन प्रकाशित करता।
मैं वसंत की पहली बयार, तू लालिमा पलाश सी ,
तेरे सौंदर्य में खोया, कवी की विरहनी की तलाश सी ।
तू शीतल चंद्रमा की चांदनी, मैं रात्रि का निर्जन आकाश।
तेरा व्यक्तित्व दिव्य, मेरे जीवन का आधार, मेरे मन की आस।
तू पर्वतों की मेघमाला, मैं घाटियों का गान,
तेरी प्रतीति में विलीन, में आत्मा तु प्राण ।
तू मधुर गीत की सरगम, मैं कवि की अनछुइ कलम।
तेरे बिना सब सूना, तू मेरी धरा, मैं तेरा गगन।
तू अरुणोदय की आशा, मैं रजनी का विश्राम,
तेरी उपस्थिति जीवन को देती कोमल विराम ।
तू नदिया की कलकल, में पर्वतों का गीत ।
में रांझे का दर्द ,तु हीर की प्रीत ।
मैं पतझड़ का अकेला पत्ता, तू बसंत की ‘असीमित’ बहार।
तेरा स्पर्श जैसे पुरवाई की कोमल बयार ।

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