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19 May 2024 · 1 min read

कविता

अनचाहा कुछ घटता है
मन खुद ही कलम पकड़ता है
संवेदना के स्पंदन से
फूट फूट कर रिसता है
कुछ कही अनकही बातों से
जब भीतर दर्द उपजता है
हृदय ग्लेशियर से पीड़ा
जब पिघल-पिघल कर बहती है
उस शब्द– सुधा के बहाने से
सिंचित होते हैं भाव कई
फिर जो गीत जन्मता है
वह कविता ही कहलाता है।

Language: Hindi
140 Views
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