“करामात” ग़ज़ल

मौसम बिना ही, आज क्यूँ बरसात हो गई,
उसने कहा जो, रात हुई, रात हो गई।
फ़ेहरिस्त-ए-आशिक़, भले उसकी तवील थी,
इक मैं ही कह सका न, “उससे बात हो गई”।
आया उसे है रास, तग़ाफ़ुल ही भला क्यूँ,
किसकी लगी नज़र, जो ख़ुराफ़ात हो गई।
मिलता है बज़्म मेँ, मगर पहचानता नहीं,
कैसे कहूँ कि उससे मुलाकात हो गई।
सदियों का था हिसाब, इक लमहे ने कर दिया,
उसकी नज़र मेँ जज़्ब, कायनात हो गई।
“आशा” जगा के ख़्वाब मेँ मुस्का के चल दिया,
वल्लाह, इक नयी ही, करामात हो गई..!
तवील # लम्बी, long
तग़ाफ़ुल # नज़रन्दाज़ करना, to neglect 3
करामात चमत्कार # miracle