20– 🌸बहुत सहा 🌸

20—
….बहुत सहा…. अब नहीं।
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क्या क्या न कहा गया हमसे
क्या क्या न सहा है हमने.
मर्यादा के एक बंधन कैसे में
एक सीमा में बांध दिया तुमने
उम्र के पहले नाजुक मोड़ पर ही
अल्हड़ बचपन को दबा दिया
न कोई खेल- खिलौने मिले..
न कोई खेल खेला हमने
उतना ही पढ़ना था मुझको
जितना पढ़ाना था तुमको
चलना था उसी रास्ते पर.
जिस पर चलाना था तुमको.
जो कहा वही करना था मुझे.
किया वही जो कहा तुमने
लीक पीटनी हर रीति की.
आंखें बंद थी हर बेटी की.
ये घर तो अपना रहा नहीं
वो घर भी अपना हुआ नहीं.
है कुछ मेरा ये जाना नहीं
होगा कुछ मेरा माना नहीं.
दुनिया में रिश्ते क्या ऐसे हैं.
जो होंगे नहीं कभी अपने.?
तिल तिल के जलती हस्ती है.
जो मिल मिल के बिखरती है.
कुछ मन की मर्ज़ी ऐसी है.
कई बार मचलती रहती है.
जो कुछ अपनी अपनी सी है.
हर हाल में अपने बस की है.
जीने की चाह सबसे बढ़ कर है
ढूंढ भी लेती है भूले रास्ते को.
हर सुख पाने के कोशिश में.
चलती जाती मंज़िल पाने को.
थमती नहीं वो ऐसे कहीं
थकती नहीं है ऐसे कभी
रुकना उसने कभी जाना नहीं.
अब जीना है उसे अपने लिए.
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महिमा शुक्ला
9589024135.
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