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9 May 2024 · 1 min read

छूट रहा है।

जैसे-जैसे हाथों से हाथ छूट रहा,
दिल भी टुकड़ों में जैसे टूट रहा,
गमों का सैलाब जो था थमा,
वो आंखों से रह रहकर फूट रहा !

किस्सों से सजा था बसेरा हमारा,
जो तुम न हो तो सब बिखर रहा,
हमारी यादों का हुजूम उमड़कर,
मेरे दरम्यान जैसे सब ठहर रहा !

क्या ऐसा होना ही लिखा था,
दिल ये मेरा बार – बार पूछ रहा,
जैसे-जैसे हाथों से हाथ छूट रहा,
दिल भी टुकड़ों में जैसे टूट रहा !

© अभिषेक पाण्डेय अभि

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