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12 Sep 2024 · 3 min read

विषय- #जो_जैसा_है_उसे_वैसा_ही_अपना_लो_रिश्ते_निभाने_आसान_हो_जाएंगे।

#विषय- #जो_जैसा_है_उसे_वैसा_ही_अपना_लो_रिश्ते_निभाने_आसान_हो_जाएंगे।

जो जैसा है उसे वैसा ही अपना लो रिश्ते निभाने आसान हो जाएंगे……… यह पंक्तियां अपने स्थान पर सही हैं। रिश्तों में अगर दोस्ती हो तो रिश्ते नहीं टूट सकते हैं। हम सब रिश्तों में शिक्षक बनते हैं विद्यार्थी नहीं। हमें सुनना पसंद नहीं होता है। किसी से कोई गलती हो तो हम उसे बड़े बड़े भाषण देते हैं। यह कहते हैं कि बुरा लगे तो माफ़ करना लेकिन तुम्हारे भले के लिए ही कहा है। यह तो गलत बात है। हम यदि किसी का अच्छा चाहते हैं तो यही बात प्यार से भी कह सकते हैं। इंसान गलतियों का पुतला होता है। जब तक जीवित है गलतियों करता रहेगा। लेकिन रिश्तों में हमें यह ध्यान रखना होगा कि हम दोस्त बनें शिक्षक नहीं। गलतियां उतनी ही करें जितनी माफ़ की जा सकें और रिश्ते भी बचे रहें।

हम अपने रिश्तों को अपने हिसाब से ढालने का प्रयत्न करते हैं। अपने विचारों के अनुसार उनके भविष्य के अच्छे बुरे की कल्पना करते हैं। जबकि ऐसा होता नहीं है। हम सब अपना भविष्य अपने कर्मों से बनाते हैं। हम रिश्तों को छोटी से छोटी बात के लिए भी सुना देते हैं। अगर छोटी सी भी गलती हो जाय तो दुनियां भर का ज्ञान देते हैं। जिसकी आवश्यकता भी नहीं होती है। इस बात से सामने वाले व्यक्ती के अहम को चोट लगती है। उसके आत्मसम्मान को ठेस लगती है। इसीलिए वो रिश्ते तोड़ने में विश्वास रखते हैं।

हम सबको अपने तरीके से जीने का हक है। हमारे बच्चों को ज्ञान और संस्कार की ज़रूरत बचपन में ही होती है। जैसे संस्कार उसे तीन साल से पांच साल की उम्र में और पांच साल से दस वर्ष की उम्र में दे सकते हैं दे दीजिए। उसके बाद वो आपकी बातें उतनी ही सुनते हैं जितना उन्हें आपने शिक्षित किया हो। एक उम्र के बाद मां बाप को बच्चों से दोस्ती कर लेनी चाहिए। ताकि वो सही दिशा में आगे बढ़ सकें। रिश्तों में समस्या तब आती है जब नए रिश्ते बनते हैं। जैसे वैवाहिक संबंध। जब विवाह होता है तब केवल दो लोग ही नहीं जुड़ते बल्कि उनके साथ दो परिवारों का मिलन होता है। दो संस्कृतियों का और दो विचारधाराओं का, दो समाजों का मिलन होता है। इसीलिए रिश्तों में प्रेम, समर्पण, धैर्य आवश्यक है। उनके विचारों को समझना आवश्यक है। ताकि रिश्ते निभाए जा सकें।

जब नए रिश्ते बनते हैं तब हमें धैर्य पूर्वक रिश्तों को नए संबंधों को समय देना चाहिए। उन्हें समझने के लिए दिल से खुले दिमाग़ से विचार करना चाहिए न कि किसी पूर्वाग्रह में आकर उनके प्रति कोई मलिन विचार रखना चाहिए। तभी रिश्ते बनते ही टूटने का भय नहीं होगा। हमें जो जैसा है उसे वैसा ही अपना लेना चाहिए। ताकि रिश्ते निभाने आसान हो जाएं। ध्यान रखें रिश्तों में दोस्त बनें शिक्षक नहीं।

आज़ उतना ही बोलें जितनी आवश्यकता हो। रिश्तों में बिना मांगें ज्ञान न दें। रिश्तों में दिखावा न करें। जो ऐसा करता है उसे करने दें आप पीछे हट जाएं। गलत कार्यों को रोक नहीं सकते हैं लेकिन पीछे हट सकते हैं। रिश्ते बार बार नहीं बनाए जा सकते हैं। न ही बार बार तोड़े जा सकते हैं। लेकिन रिश्तों को जोड़ने का प्रयत्न मात्र कर सकते हैं।
_ सोनम पुनीत दुबे
स्वरचित रचना

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