मेरी (ग्राम) पीड़ा
मुझे (ग्राम) अपने स्वार्थ में इतना डुबो सा दिया गया हैं कि मुझे (ग्राम) अग्नि में भी झोंकने से यहाँ राजनीति चाटुकार नहीं चूक रहे हैं, मुझे (ग्राम) अपने स्वयं घर में बंधनों में बंधक बना डाला हैं, मेरे हाथ पाँव बांध दिया जाता हैं, मेरे ही परिवार में मेरे ही सदस्य मुझे इतना जकड़ रखा हैं, कि मुझे अपने ही परिवार में एक सदस्य से दूसरे सदस्य तक मिलने जाने में कट बंधों का सामना करना पड़ रहा हैं, मेरे परिवार वाले मुझे ही बाट रहे हैं, अपने अंतर मन में मेरे बेटे (सदस्य) एकता और सप्रेम ही भूल गए हैं, बस मारों काटो, लूटो, तोड़ो, लड़ाओ, वीभत्स कलश, अमृत कलश बताकर पिलाओं, नए पुराने सभी बच्चों को राक्षस बनाओ, ऐसी प्रथा जन्म ले रहा हैं, मुझे अब तो विष धर जैसे नाग के घेरे में खड़ा कर दिया हैं, अपने मुर्गा मसाला साग जैसे स्वादिष्ट स्वाद में लिप्त हैं, जैसे ही आधुनिक कला जीवन में प्रतिपादन हो रहा हैं, उतना ही मेरे (ग्राम) बच्चे मेरे अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करते जा रहे हैं, जो मेरा अस्तित्व पूर्वजों के स्थिति समूह में था, उस पर तो अब चन्द्र ग्रहण सा लग गया हैं, मेरे माथे पर कलंक का तिलक लगा कर लालायित हो रहे हैं, मुझे ऐसी पीड़ा से मुक्ति का मार्ग प्रदान करों, मै तड़प रहा हूँ, व्याकुल हूँ, मुझे मुक्त करों, मुझे आजादी चाहिए, पुनरावृति प्रसाद ग्रहण कराओ, करेले का फल तो ठीक हैं, लेकिन मीठा राजनीति विष का रस पान मुझे मत कराओ, मुझे (ग्राम) काटे का ताज पसंद हैं, लेकिन अनैतिकता में मुझे स्वर्ण मुकुट कल्पना आवरण मत दो, मेरा यथार्थ पहचान करके मेरे संस्कृतियों का परित्याग न करों, मेरे पुराने क्रिया कलाप में नव जागरण का एक वस्त्र पहना दो मेरे बच्चों (सदस्यों) बस यहीं माँगता हूँ।