అమ్మా తల్లి బతుకమ్మ
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'
कामनाओं का चक्रव्यूह, प्रतिफल चलता रहता है
साहिल समंदर के तट पर खड़ी हूँ,
झील
गौ नंदिनी डॉ विमला महरिया मौज
छोड़ कर घर बार सब जाएं कहीं।
जब कोई हो पानी के बिन……….
नैनो में सलोने सपन भी ख़ूब जगाते हैं,
गीत- सरल फ़ितरत न नाजुकता इसे संस्कार कहते हैं...
तुम आओगे इक दिन इसी उम्मीद में हम दर को देखते हैं,
दवाइयां जब महंगी हो जाती हैं, ग़रीब तब ताबीज पर यकीन करने लग
*करो अब चाँद तारे फूल, खुशबू प्यार की बातें (मुक्तक)*