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19 Feb 2024 · 1 min read

ग़ज़ल

एक मुद्दत तक सिरहाने ग़म रहा ।
इसलिए तकिया हमेशा नम रहा ।

रोज़ पढ़ना , रोज़ लिखना याद है,
जो पढ़ा औ’ जो लिखा वो कम रहा ।

दिल के भीतर जल रही थी जब शमाँ,
उस समय आँखों के आगे तम रहा ।

घर चमन था बन गया सेहरा, मग़र
एक “ईश्वर” की कृपा का दम रहा ।
०००

—— ईश्वर दयाल गोस्वामी ।

Language: Hindi
2 Likes · 121 Views
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