कुंडलिया
कुंडलिया
ठंडी हवा बाहर चले , अंदर ज्यादा शीत।
खाते चाय पकौड़ियाँ , गए कई दिन बीत।।
गए कई दिन बीत, हमें कुछ नया खिलाओ।
व्यंजन होंगे और, जरा उनसे मिलवाओ।।
सुनो हमारी बात, अरे! सोना की मम्मी।
गाजर हलुवा मिले, तो पास लगे ठंडी।।
©दुष्यन्त ‘बाबा’