काग़ज़ पर उतारी जिंदगी
बहुत बार काग़ज़ पर उतारी जिंदगी।
कमियां देख खुद ही सवारी जिंदगी।
हर दांव इससे मैं हारती ही रही
मिली मुझे तेज़ ये जुआरी जिंदगी।
खेल खेल में चित्त कर गयी मुझे
बड़ी सधी हुई ,ये खिलाड़ी जिंदगी।
बड़े मनुहार से मनाती रही हूं
मान जा मेरी ,ओ दुलारी जिंदगी।
सांसों का बोझ उठाना ही पड़ेगा
सौ बार दर से है दुत्कारी जिंदगी ।
सुरिंदर कौर