16– 🌸उठती हुईं मैं 🌸

16- 🌸 – “उठती हुई मैं “🌸
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हाँ! ” मैंने देखा है ऊँची उठते हुये
आसमान की ओर नज़र टिकाये
अपनी असीम आशाओं को
तितर बितर होती सँभावनाओं को
एक- एक अपने नन्हें कदम
मज़बूत सीढियों पर रखते हुए
भले ही वे एक सी नहीं थीं
पर प्रकृति ने ऐसे ही उन्हें गढ़ा है
टेढ़ी -मेढ़ी छोटी -बड़ी शिलाओं सी
जीवन की आगत बाधाओं सी,
पर
हाँ ! एक दिन छू लूंगी
जमीं और समंदर को पार कर
अपनी खुशियों का आसमान
नहीं भूल सकूंगी वे नींव के प्रस्तर पीठ
न ही उन अनगढ़ अँधेरे रास्तों को
नये अनुभव और उजास पाने का सुख
भरमा न दे पथरीले कँटीले अतीत को
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महिमा शुक्ला, इंदौर