चार शेर मारे गए, दर्शक बने सियार।
लोग अपनी हरकतों से भय नहीं खाते...
बढ़ती इच्छाएं ही फिजूल खर्च को जन्म देती है।
हर दिन एक नई दुनिया का, दीदार होता यहां।
मुकम्मल क्यूँ बने रहते हो,थोड़ी सी कमी रखो
तारीख देखा तो ये साल भी खत्म होने जा रहा। कुछ समय बैठा और गय
नृत्य दिवस विशेष (दोहे)
Radha Iyer Rads/राधा अय्यर 'कस्तूरी'
ए खुदा - ए - महबूब ! इतनी तो इनायत कर दे ।
ज़ब्त को जितना आज़माया है
ये मत पूछो यारों, मेरी क्या कहानी है,
जिंदा हूँ अभी मैं और याद है सब कुछ मुझको
“दर्द से दिल्लगी”
धर्मेंद्र अरोड़ा मुसाफ़िर