सृजन भाव का दिव्य अर्थ है (सजल)
अपनी कीमत उतनी रखिए जितना अदा की जा सके
ख्वाबों से परहेज़ है मेरा "वास्तविकता रूह को सुकून देती है"
देख वसीयत बिटिया खड़ी मुसकाय
किससे यहाँ हम दिल यह लगाये
नहीं जब कभी हो मुलाकात तुमसे
*एक ग़ज़ल* :- ख़्वाब, फ़ुर्सत और इश़्क
राजनीतिक गलियारों में लोग किसी नेता के मरने के बाद मातम मानत
*मनः संवाद----*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
कल
Vishnu Prasad 'panchotiya'
हाय...! ये चाय की चुस्की.,
किणनै कहूं माने कुण, अंतर मन री वात।
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
ग़ज़ल : उसने देखा मुझको तो कुण्डी लगानी छोड़ दी
हे अंजनी सुत हनुमान जी भजन अरविंद भारद्वाज
अरविंद भारद्वाज ARVIND BHARDWAJ
"सूर्य -- जो अस्त ही नहीं होता उसका उदय कैसे संभव है" ! .