कुंडलिया. . . .
कुंडलिया. . . .
जाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर ।
पीते – पीते हो गया , खारा उसका नीर ।
खारा उसका नीर , किसी के काम न आता ।
फिर भी रखता तीर ,प्रेम से अद्भुत नाता ।
टूटे दिल के घाव , जमाना क्या पहचाने ।
जिसको लगती चोट ,दर्द वो उसका जाने ।
सुशील सरना / 19-3-25