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3 Apr 2024 · 1 min read

*जमीं भी झूमने लगीं है*

जमीं भी झूमने लगीं है,
आसमान भी मुस्कुराने लगें हैं,
पलाश के फूलों की सुंदरता देख,
मन प्रसन्नचित होने लगे हैं।
हर कली खिल-खिलाती है,
जब मेरी कविता बाहर को झांकती हैं ।
रोक ना पाऊं भावनाओं को मेरे,
कविता बना कर बहाऊ इन्हें।
आप भी मुस्कुराने को,
पढ़ो कविता।
गढ़ों कविता।

1 Like · 1 Comment · 224 Views

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