Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
26 Feb 2024 · 5 min read

रामधारी सिंह दिवाकर की कहानी ‘गाँठ’ का मंचन

शनिवार, 14 अगस्त को कालिदास रंगालय में नाटक ‘गाँठ’ का मंचन किया गया। यह कला जागरण की प्रस्तुति थी जिसे निर्देशित किया था पटना रंगमंच के वरिष्ठ रंगकर्मी सुमन कुमार ने। मूलतः ‘गाँठ’ रामधारी सिंह दिवाकर सर की कहानी है जिसका नाट्य रूपांतर विवेक कुमार ने किया है। चूँकि कहानी और नाटक में कुछ मौलिक अंतर होते हैं, दोनों का प्लॉट(कथानक) भले समान हो पर कहन एक जैसा नहीं हो सकता। कहानी अगर कोई नई बात कह रही हो तो उसकी सादगी, उसकी बेबाकी और सपाट बयानी भी पाठक को नहीं अखरती, पर नाटक के मामले में ऐसा नहीं होता, नाटक में दर्शकों के मनोरंजन का उचित ख्याल रखना पड़ता है इसलिए नाटक को कहानी की तुलना में अधिक रसपूर्ण होना ही चाहिए। नाटक ‘गाँठ’ देखकर यही महसूस भी हुआ कि कहानी ‘गाँठ’ से यह निकला अवश्य है, इसकी भाषा वही है जो कहानी की है, भाव भी वही है। कहानी जो कहती है नाटक भी वही कहता है, किन्तु अपने तरीके से। इस उत्कृष्ट कहानी के बेहतरीन नाट्य रुपांतरण के लिए विवेक भैया को बधाई।

कहानी का आरंभ होता है नकछेदी राम के बड़े पुलिस अधिकारी (एन सी राम) बनने के बाद उसके गाँव आने की सूचना से।

” वैशाख- जेठ की तपती दोपहरी के आकाश में जैसे अचानक बादल उमड़ आए हों, कुछ ऐसी ही सुखद थी यह सूचना कि नकछेदी गाँव आ रहा है। ”

इस एक पंक्ति से पता चल जाता है कि नकछेदी का उसके गाँव में आना क्या महत्व रखता है। जिस समाज में हर कोई रोटी, कपड़ा और मकान के लिए ही संघर्ष कर रहा हो, शिक्षा और स्वास्थ्य पर बिल्कुल ध्यान ही न हो ; ऐसे समाज का लड़का पढ़- लिखकर बड़े अधिकारी बन जाएगा तो उसके लोग उसके लिए पलकें बिछाएंगे ही, उसके स्वागत में अपने दुःख- तक़लीफ़ को भुलाकर उसपर अपनी सारी खुशियाँ लुटाएंगे ही। वह ऐसे समाज का दीया है जो सदियों तक रौशनी को जाना ही नहीं।
नाटक की शुरुआत नकछेदी के जन्म से होती है। वह फगुनी राम का तीसरा लड़का है। सुंदर, सुडौल और गौर वर्ण का। पहले के दो लड़के किन्हीं बीमारियों की वजह से जीवित नहीं रह सके, किन्तु फगुनी राम को लगता है कि उनके बेटों की जान पिठिया प्रेत ने ली है। इसलिए उस काल्पनिक पिठिया प्रेत से अपने तीसरे बेटे को बचाने के लिए जन्म के तुरंत बाद ही सुगबतिया मौसी को सवा सेर गेहूँ के बदले बेच दिया था। जिससे उसका नाम बेचन पड़ गया था। उसी प्रेत से बचने के लिए उसके नाक में छेद भी करवाया गया जिससे उसका नाम नकछेदी पड़ गया। ऐसा नहीं है कि कभी अच्छा नाम नहीं रखा गया, पड़ोस के लक्खन गुरुजी ने उसका नाम श्याम सुंदर रखा था, पर बाभन और बबुआन टोली के लोगों को यह बात अच्छी नहीं लगी। वे लोग तो पहले से ही परेशान थे कि चमार का बच्चा गोरा कैसे हो सकता है! उसे समय समय पर इसके लिए पीटा जाता और ‘करिया बाभन गोर चमार’ कह कर चिढ़ाया जाता था। ऐसे में श्याम सुंदर नाम से परेशान होना स्वाभाविक था। उन लोगों का कहना था- “चमार है तो चमार जैसा नाम रखो।… बाप का नाम लत्ती- पत्ती, बेटा का नाम दुर्गादत्त! ” उन्हें लगता है कि दक्षिण टोले (दलित एवं पिछड़े लोगों की बस्ती) के लोगों को हमेशा उनसे कमज़ोर होना चाहिए, दबा हुआ होना चाहिए। इस लड़ाई में अंततः जीत उन्हीं लोगों की हुई। बच्चे का नाम नकछेदी ही रहा। फिर उसका स्कूल जाना आरंभ हुआ। स्कूल जाने तक तो ठीक था पर उसकी प्रतिभा में लगातार निखार से और कक्षा में हमेशा अव्वल आने से बबुआन टोली के लड़कों को बुरा लगता। मौका मिलते ही बात-बे-बात उसे पीट दिया जाता था। पर इससे वह परेशान नहीं होता बल्कि और अधिक जोश के साथ पढ़ाई में जुट जाता। सरकार की छात्रवृत्ति योजना का लाभ लेकर वह शहर में आ गया और भारतीय प्रशासनिक सेवा की तैयारी में जुट जाता है। इसी बीच एक सम्पन्न परिवार की लड़की मेघा से उसे प्यार हो जाता है। मेघा बड़े शहरों में पली- बढ़ी है इसलिए नकछेदी के चमार होने का मतलब वह ठीक से समझ नहीं पाती है। वास्तव में चमार, दुसाध, मुसहर या डोम होने का वास्तविक मतलब भारत के गाँवों में पता चलता है जहाँ गाँधी जी के अनुसार भारत की आत्मा निवास करती है। यह हिस्सा मूल कहानी में नहीं है, इसे नाटकीयता उत्पन्न करने के लिए अलग से जोड़ा गया है। खैर, परीक्षा होती है और परिणाम आता है। नकछेदी आईपीएस अधिकारी के रूप में चयनित होता है और वह बिहार कैडर का ही चुनाव करता है। अब वह आईपीएस एन सी राम है। यह खबर जैसे ही उसके गाँव के बाभन और बबुआन टोली में फैलती है सारे लोग जो कभी जरा भी उसे पसंद नहीं करते थे सभी उससे हाथ मिलाने के लिए आतुर हैं। नकछेदी भी पिछली सारी कड़वी यादों को भुलाकर सबसे दोस्ती कर लेता है। यह बात दक्षिण टोली के लोगों को अच्छी नहीं लगती है। उन्हें लगता है कि नकछेदी केवल हमारा होना चाहिए, बाभन और बबुआन टोली के लोगों का नहीं। मूल कहानी में दक्षिण टोली का गुलटेन कहता है- “गुरुजी, सही है कि ड्योढ़ी के बाल- बच्चे गोड़ छूते हैं नकछेदी का लेकिन क्यों?… इसी तरह गोड़ छू- छूकर बबुआन टोली के लोगों ने कितना काम निकाल लिया सो तो जानते ही हैं। तीन दरोगा में बहाल हुए, सात- आठ सिपाही बन गए। ”
इस पर टीटी कहता है-“अब समझ में आया न कि तीस- चालीस मर्डर करने वाला डायमंड सिंह जो जेल से फरार है, लेकिन छुट्टा साँढ़ की तरह इलाके में घूमता है, सो कैसे? ”

पता नहीं क्यों, पर इतने महत्वपूर्ण डायलॉग को नाट्य रुपांतरण में गायब कर दिया गया।

कहानी में जो बात नकछेदी के बच्चों की खूबसूरती के लिए है, नाकट में वही बात नकछेदी की पत्नी मेघा के लिए कहलवाया गया है। कहानी में एक पात्र घटरा कहता है- “बबुआन टोली ‘डौन’ हो गई नकछेदी के बच्चों के सामने। कौन कह सकता है कि बाभन – राजपूत के बच्चे नहीं हैं? घप-घप गोर… चिक्कन- चुनमुन!’
इस वक्तव्य में विरोधाभास है। पहले तो यह माना गया कि उन बच्चों की खूबसूरती के सामने बबुआन टोली के बच्चों की खूबसूरती नहीं टिकती। फिर अगली ही पंक्ति में उन्हें आपस में मिला दिया गया! असल में यह विरोधाभास लेखक की कमजोरी नहीं बल्कि दलित और पिछड़े समाज की कमजोरी है जिससे उबरकर ही समतामूलक समाज का निर्माण संभव है।
कहानी मोड़ तब लेती है जब एक साल बाद नकछेदी पुनः गाँव आता है और अपने घटरा काका के निमंत्रण पर उनके यहाँ खाना खाने जाता है। खाना एकदम नई थाली में परोसा जाता है। नई थाली देखकर नकछेदी इस बारे में पूछता है तो पता चलता है कि यह वही थाली है जिसमें पिछले साल वह ड्योढ़ी में खाना खाया था। उसके हाथ से निवाला छूट जाता है। वह बिना खाए ही गाँव छोड़कर कर शहर चला जाता है। इस घटना से दक्षिण टोली के लोग खुश हो गए, बाभन और बबुआन टोली के लिए नकछेदी के मन में गाँठ जो पड़ गया था।
” हम कहते थे न काका, नकछेदी बबुआनी पोलटिस में फँस गए हैं? कहते थे न? ”
***
आनंद प्रवीण, पटना

379 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

जब लोग आपके विरुद्ध अधिक बोलने के साथ आपकी आलोचना भी करने लग
जब लोग आपके विरुद्ध अधिक बोलने के साथ आपकी आलोचना भी करने लग
Paras Nath Jha
*यह कुंभ-ज्योति है ईश्वरीय, यह जग-जन-मंगलकारी है (राधेश्यामी
*यह कुंभ-ज्योति है ईश्वरीय, यह जग-जन-मंगलकारी है (राधेश्यामी
Ravi Prakash
"मेरी प्यारी दादी माँ "
CA Amit Kumar
ढ़लती उम्र की दहलीज पर
ढ़लती उम्र की दहलीज पर
डॉ.एल. सी. जैदिया 'जैदि'
जब तक हम ख़ुद के लिए नहीं लड़ सकते हैं
जब तक हम ख़ुद के लिए नहीं लड़ सकते हैं
सोनम पुनीत दुबे "सौम्या"
वेयरहाउस में सड़ गया
वेयरहाउस में सड़ गया
Dhirendra Singh
आव रे चिरैया
आव रे चिरैया
Shekhar Chandra Mitra
ईश्वर जिसके भी सर्वनाश का विचार बनाते हैं तो सबसे पहले उसे ग
ईश्वर जिसके भी सर्वनाश का विचार बनाते हैं तो सबसे पहले उसे ग
इशरत हिदायत ख़ान
ज़िन्दगी से नहीं कोई शिकवा
ज़िन्दगी से नहीं कोई शिकवा
Dr fauzia Naseem shad
" पाती जो है प्रीत की "
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
प्रश्न अगर हैं तीक्ष्ण तो ,
प्रश्न अगर हैं तीक्ष्ण तो ,
sushil sarna
नया दिन
नया दिन
Vandna Thakur
भूल जा वह जो कल किया
भूल जा वह जो कल किया
gurudeenverma198
उसके जाने से
उसके जाने से
Shikha Mishra
4471.*पूर्णिका*
4471.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
उदर क्षुधा
उदर क्षुधा
विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’
बेबसी
बेबसी
धर्मेंद्र अरोड़ा मुसाफ़िर
😊सुप्रभातम😊
😊सुप्रभातम😊
*प्रणय प्रभात*
कलियां उनके लिए गिराना थोड़ी लाकर
कलियां उनके लिए गिराना थोड़ी लाकर
Sarla Mehta
जीवन को आसानी से जीना है तो
जीवन को आसानी से जीना है तो
Rekha khichi
*शक्ति आराधना*
*शक्ति आराधना*
ABHA PANDEY
ग़ज़ल
ग़ज़ल
ईश्वर दयाल गोस्वामी
इम्तिहान
इम्तिहान
Saraswati Bajpai
ज़िन्दगी
ज़िन्दगी
SURYA PRAKASH SHARMA
मेरे उर के छाले।
मेरे उर के छाले।
Anil Mishra Prahari
हे ईश्वर! क्या तुम मुझे क्षमा करोगे?
हे ईश्वर! क्या तुम मुझे क्षमा करोगे?
राकेश पाठक कठारा
काश !
काश !
Akash Agam
Bad in good
Bad in good
Bidyadhar Mantry
बहुत मुश्किल होता हैं, प्रिमिकासे हम एक दोस्त बनकर राहते हैं
बहुत मुश्किल होता हैं, प्रिमिकासे हम एक दोस्त बनकर राहते हैं
Sampada
टन टन
टन टन
SHAMA PARVEEN
Loading...