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19 Feb 2024 · 1 min read

ग़ज़ल

दिल ये जाके कहाँ बसा मेरा ।
कोई देता नहीं पता मेरा ।

लोग आते हैं, चाय पीते हैं,
है नहीं जिनसे राब्ता मेरा ।

यार मिलते हैं तो रकीबों-से,
है नहीं कोई आशना मेरा ।

काध्यमंचों से या नशिस्तों से,
हर तरह नाम है कटा मेरा ।

नाकि हिन्दू से न मुसलमाँ से,
आदमी से है वास्ता मेरा ।

साँस में राम जोड़ते चलिए,
सिर्फ़ इतना है मशविरा मेरा ।
०००
__ ईश्वर दयाल गोस्वामी

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