हौसला जिद पर अड़ा है
हौसला जिद पर अड़ा है लौटना तोहीन होगी
नदियां निकल गई है समुंदर से बेवफाई क्यों ।।१
जिस गली जाना नहीं है वहां से रुख मोड़ लो
छोड़ आए गलियां जो वहां फिर आवाजाही क्यों।।२
मुहब्बत में चुन लिया जिसको अपना नगमा तो
फिर बार-बार उससे इस तरह रुसवाई क्यों।।३
घुस बैठे हैं आप इस कदर फूलों के बगीचे में तो
फूलों को लीजिए कांटो से सरखपाई क्यों ।।४
जुगनू अकेला निकल बैठा है सूरज के सामने
जुगनू की खुद्दारी है यह उससे गद्दारी क्यों।।५
मसीहा जिसको मानकर मंजिलों तक आ गए
मीलों चल कर इस तरह हाथ की छुड़वाई क्यों।।६
मिले हो तो नयन के समुंदर से नैनो को डूबाइए
अगर इश्क नहीं है तो नजरें यूं चुराई क्यों।।७
तुम अपना घर रोशन करो अपना दिया जलाइए
खुद जुगनू होकर भी चिरागों से रोशनाई क्यों।।८
राहत-ए- मुफलिसी का अब हर जगह ही जिक्र है
देखता खुदा है तो बेवजह प्रदर्शनाई क्यों।।९
पीठ पीछे दूसरे के वो चलाने लगे हैं छुरियां बस
सामने आते ही फिर इस तरह भाई भाई क्यों।।१०
✍कवि दीपक सरल