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24 May 2024 · 1 min read

कदम जब बढ़ रहे

गीतिका
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जरा सा मुस्कुरा भी दो बहुत अब हो चुका रोना।
कदम जब बढ़ रहे आगे निराशा को नहीं ढोना।

निशा जब बीत जायेगी उगेगा सूर्य प्राची में।
सभी का मोह लेगा मन सुहाती भोर का होना।

करेंगे कोशिशें जी भर मिलेंगी मंजिलें उनको।
सभी होगा सुलभ हर पल पड़ेगा कुछ नहीं खोना।

हमेशा रह नहीं पाता कभी मौसम उदासी का।
खिलेंगे फूल मन भावन महक से खिल उठे कोना।

ढिंढोरा पीटने का काम होता व्यर्थ है लेकिन।
परीक्षा से गुजरता जब चमकता खूब है सोना।

गले का हार बन जाते बहुत कोमल हुआ करते।
फसल है फूल की सुन्दर कहीं भी शूल मत बोना।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, २४/०५/२०२४

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