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9 Feb 2024 · 1 min read

मैं पापा की परछाई हूं

छोटे से वो पैर मेरे और छोटी वो उंगलियां ,
बिन कुछ समझे पकड़ पापा का हाथ देखने चली मैं दुनिया ।

इस दुनिया ने क्या रंग सिखाया ,
दोगले रूप में जीने कि ढ़ंग सिखाया ।
थी मैं अंजान सब रंगों से ,
कुछ ने रंग बदलना सिखाया ,
कुछ ने ढ़ंग बदलना सिखाया ।
लेकिन जब से पकड़ा पापा का हाथ ,
पापा ने नि:स्वार्थ जीना सिखाया ।

खुद की खुशी ढूंढ लूं मैं ,
जिंदगी के रंगों को चूम लूं मैं ,
यही है उनके जिंदगी का आयाम ,
कभी कहते करो ,काम कभी करो दिनभर आराम ,
लेकिन आज भी उनके आगे रही मैं वहीं छोटी नादान ।

मैंने जिंदगी सरलता से जीना सीखा ,
लेकिन पापा के बिना हर लम्हा था फीका ,
रहते थे बहुत दूर लेकिन उन्ही के आशिर्वाद से खुद को आगे बढ़ाना सीखा ।

जिंदगी के एक ऐसे चरण पर खड़ी थी मैं ,
जहां पापा के हर खुशी की कड़ी थी मैं ,
पता नहीं किस उलझन में पड़ी थी मैं ,
आज भी ‌‌‌‌‌उनके साथ के लिए अकेले खड़ी थी मैं ।

समय का एक चाल था वो ,
संगीत का एक राग था वो ,
जिस पल पाया पापा के गुण खुद में ,
मेरे जिंदगी का नया अंदाज था वो ।

मेरे पापा हैं सबसे अनमोल ,
उन्होंने दिखाया जिंदगी का हर रोल ,
अगर न होता पापा के हाथों का मोल ,
कभी ना सीख पाती रोटी बनाना गोल ,
पुरी जिंदगी बन गई मेरी भूगोल ,
पापा जी ने सिखाया हर कला का मोल ,
हो गयी मेरी जिंदगी अनमोल ।

Language: Hindi
1 Like · 106 Views
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