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8 Feb 2024 · 1 min read

एक साक्षात्कार – चाँद के साथ

एक साक्षात्कार – चाँद के साथ

पूछा हमने चाँद से – कुछ सीधा सीधा सवाल
क्यों आसमान नहीं होता रोशन – जब तुम आते हो ?
क्यों झपका – झपका के पलक तारे भी तुमसे पूछते हैं
“क्यों बिखरती है चांदनी तुमसे कोसों दूर धरा पर ?

चाँद का चेहरा मलीन सा हो गया
बादलों की घूँघट से ज़रा सा ओट कर के
हटा आँचल का अपने एक कोना – हौले से उसने ये कहा
‘तुमने भी तो देखा है हमारा एक ही रुख

तुमने देखा ही कहाँ है
मेरे पीछे छुपे युगों से मेरे “काले चाँद” का चेहरा
कभी देखा है के जब भी थोड़ा चमकता हूँ
चाँदनी भागती है लिपटने यूँ धरा से
कभी देखा है के कैसे सागर है उफनता
बार बार – मुझसे यूँ लिपटने ?

पता नहीं है तुमको शायद
बात युगों पहले की है ये
नियति ने अलग किया हमें था जब उस धरा से
तब से आज तक – मौन हो कर बंद अंधेरे में
समेटता हूँ प्रेम अपना एक पक्ष तक
मैं भेजता हूँ चांदनी- जो मेरा “प्रेम-दूत” है
दूर हूँ मैं – पर हर पक्ष मिलने की ख़ुशी में
लिपट के सागर की बाहों से , रोशन धरा को मैं करता हूँ

मूक बैठा रह गया मैं जवाब चाँद का ये
लाजवाब कर गया हमें

Language: Hindi
1 Like · 2 Comments · 125 Views
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