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30 Jan 2024 · 1 min read

ख़यालों में रहते हैं जो साथ मेरे – संदीप ठाकुर

ख़यालों में रहते हैं जो साथ मेरे
कभी छू न पाए उन्हें हाथ मेरे
लबों पे हमेशा तिरा नाम आया
दुआ के लिए जब उठे हाथ मेरे
लिए काँच जैसा बदन पत्थरों पे
बड़ी दूर तक वो चला साथ मेरे
मैं तेरे महल की तरफ़ जब चला था
लिपटते थे क़दमों से फ़ुटपाथ मेरे
अभी तक महकती हैं कलियाँ लबों की
किसी फूल ने चूमे थे हाथ मेरे
चलो मान लेता हूँ राहें जुदा हैं
मगर दो क़दम तो चलो साथ मेरे
अभी ख़ुद-ब-ख़ुद रास्ता बन रहा है
अभी बह रही है नदी साथ मेरे

संदीप ठाकुर
Sandeep Thakur

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