Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
23 Jan 2024 · 1 min read

Two Different Genders, Two Different Bodies, And A Single Soul.

Once again, I am flying on my horizon,
Carrying so many memories; I never thought they would be mine.
I covered miles just to know if those wavelengths were right,
And came to realize that you were my lost and broken part, invisible for so long from my eyesight.
Holding your hands was not so easy,
But magical to know that letting you go was even harder and more uneasy.
My silence had been my asset, where no one was allowed,
But you found easily the voices I never said aloud.
Time passed in just a blink of an eye,
Leaving behind smiles and a kind of emptiness to rise.
Now the sunrises will not come alone,
I know that somewhere you will also be standing at the edge, losing yourself in the memories that were ours alone.
It’s unbelievable to know how God conspires with our roles,
Two different genders, two different bodies, and a single soul.

Language: English
76 Views
Books from Manisha Manjari
View all

You may also like these posts

कुछ-न-कुछ तो करना होगा
कुछ-न-कुछ तो करना होगा
कुमार अविनाश 'केसर'
विषय-संसार इक जाल।
विषय-संसार इक जाल।
Priya princess panwar
बुला रहा है मुझे रोज़  आसमा से कौन
बुला रहा है मुझे रोज़ आसमा से कौन
Kanchan Gupta
रक्षाबंधन - एक अटूट बंधन
रक्षाबंधन - एक अटूट बंधन
Savitri Dhayal
दोहे
दोहे
seema sharma
"संवाद "
DrLakshman Jha Parimal
करोगे श्रम मनुज जितना
करोगे श्रम मनुज जितना
लक्ष्मी सिंह
दर्द देह व्यापार का
दर्द देह व्यापार का
Sandhya Chaturvedi(काव्यसंध्या)
बहुत प्यारी है प्रकृति
बहुत प्यारी है प्रकृति
जगदीश लववंशी
आज मैने तुमको कुछ इस तरह याद फरमाया…
आज मैने तुमको कुछ इस तरह याद फरमाया…
PRATIK JANGID
इंसान हूं मैं आखिर ...
इंसान हूं मैं आखिर ...
ओनिका सेतिया 'अनु '
अगर कभी मिलना मुझसे
अगर कभी मिलना मुझसे
Akash Agam
— कैसा बुजुर्ग —
— कैसा बुजुर्ग —
गायक - लेखक अजीत कुमार तलवार
तुझे स्पर्श न कर पाई
तुझे स्पर्श न कर पाई
Dr fauzia Naseem shad
तरही ग़ज़ल
तरही ग़ज़ल
Shailendra Aseem
माटी
माटी
डॉ राजेंद्र सिंह स्वच्छंद
#दोहा-
#दोहा-
*प्रणय*
ग़ज़ल-अपनी ही एक ख़ुमारी है !
ग़ज़ल-अपनी ही एक ख़ुमारी है !
Shyam Vashishtha 'शाहिद'
शब्द
शब्द
Mamta Rani
जीवन का खेल
जीवन का खेल
Sudhir srivastava
2896.*पूर्णिका*
2896.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
संसार क्या देखें
संसार क्या देखें
surenderpal vaidya
वक्त के साथ लड़कों से धीरे धीरे छूटता गया,
वक्त के साथ लड़कों से धीरे धीरे छूटता गया,
ब्रजनंदन कुमार 'विमल'
मेरा दुश्मन
मेरा दुश्मन
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
कुछ खास शौक नही है मुझे जीने का।
कुछ खास शौक नही है मुझे जीने का।
Ashwini sharma
- वो एक दिन जरूर आएगी -
- वो एक दिन जरूर आएगी -
bharat gehlot
जिसने हर दर्द में मुस्कुराना सीख लिया उस ने जिंदगी को जीना स
जिसने हर दर्द में मुस्कुराना सीख लिया उस ने जिंदगी को जीना स
Swati
*थियोसॉफिकल सोसायटी से मेरा संपर्क*
*थियोसॉफिकल सोसायटी से मेरा संपर्क*
Ravi Prakash
घर का हर कोना
घर का हर कोना
Chitra Bisht
संघर्षों की
संघर्षों की
Vaishaligoel
Loading...