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15 Jan 2024 · 4 min read

यमराज का यक्ष प्रश्न

आज सुबह की बात है
अच्छी भली गहरी नींद में जब मैं सो रहा था,
सपने में अयोध्याधाम में विचरण कर रहा था
तभी किसी ने मुझे झकझोर कर जगाया
आपकी कसम बहुत गुस्सा आया
रजाई चेहरे से हटाया, आंखें मिचमिचाकर खोला
तो सामने मनहूस यमराज नजर आया।
मैंने धमकाया – बेवकूफ तू इतनी सुबह क्यों आया?
मेरे अयोध्याधाम भ्रमण की राह में
आखिर रोड़ा क्यों अटकाया?
बड़ी मासूमियत से यमराज हाथ जोड़कर बोला
आप तो सोते में भी अयोध्याधाम टहल रहे हो
और मेरी हालत समझने से पल्ला
झाड़ने का जुगत भिड़ा रहे हो।
पर आपको मेरी समस्या का हल निकालना होगा
वरना मेरे अनशन ही नहीं
भूख हड़ताल का सामना करना होगा।
हमेशा की तरह मैंने हथियार डाल दिया
और यमराज को अपनी समस्या बताने का
किसी शहंशाह की तरह हुक्म सुना दिया।
यमराज हाथ जोड़कर कंपकंपाते हुए कहने लगा
प्रभु! यमलोक में मेरे चेले चपाटे
शायद मुझे बेवकूफ समझ रहे हैं,
मेरे हर तर्क को हवा में उड़ा रहे हैं।
मैंने कहा आखिर ऐसा क्या हो गया?
जो तुम्हारे तोते उड़े जा रहे,
और तुम मेरा सूकून छीनने यहां तक आ गये।
यमराज ने कहा प्रभु! प्रश्न वास्तव में जटिल है
यह और बात है कि आज तक किसी ने उठाए नहीं है,
वैसे तो मैं भी मानता हूँ कि जो हुआ
वो समय की मांग नहीं नियत और ईश्वर की इच्छा….थी.
पर मेरे चेलों का प्रश्न भी अपनी जगह जायज है
उनको दोष देना एकदम नाजायज है।
माना कि राम जी भगवान विष्णु का अवतार हैं
पर राज्याभिषेक तो राजकुमार राम का हो रहा था
जिसका फैसला राजा दशरथ का था।
यहाँ तक तो ठीक था
क्योंकि राजा दशरथ का तो यह सर्वाधिकार था,
कि वह किसी को भी राजा बनाते
किसी का विरोध भी तो न था।
और यह मैं तो क्या दुनिया भी मानती है
कि राम जी का राज्याभिषेक
कहीं से भी तनिक अनुचित ही नहीं था
वैसे भी राम जी राजा दशरथ ज्येष्ठ पुत्र थे ।
पर बड़ा प्रश्न तो यह है कि
आखिर दशरथ जी को
राम के राज्याभिषेक की इतनी क्या जल्दी थी?
वो भी तब जब दो पुत्र भरत शत्रुघ्न ननिहाल में थे
तब उसी समय राज्याभिषेक का निर्णय
आखिर क्या सोच कर कर बैठे थे?
आखिर एक राजा के लिए न सही
पर पिता के लिए ये कितना उचित था?
अपने ही दो बच्चों को राज्याभिषेक से
विलग रखने के पीछे की आखिर मंतव्य क्या था?
यदि ऐसा न होता तो शायद स्थिति इतनी खराब न होती
तब शायद कैकेई रामजी को वनवास
और भरत के लिए राजगद्दी की जिद भी न करती।
तब दशरथ को पुत्र वियोग भी न होता
फिर असमय दशरथ जी के प्राण छूटने का
घटनाक्रम भी इस तरह न घटाहोता।
हां! यह भी सौ टका ठीक है
कि तब हमें प्रभु श्रीराम जी ने मिलते
राम नाम का जीवन मंत्र दुनिया को न मिलता
और अयोध्या आज अयोध्याधाम न होता।
साधु संन्यासियों का यज्ञ, हवन अनुष्ठान न पूरा होता
अहिल्या शबरी का उद्धार न हुआ होता
रावण ,बाली ही नहीं जाने कितने
असुरों राक्षसों, पापियों का वध न होता,
रामसेतु का आज इतिहास न होता
मंदिर मस्जिद विवाद न होता
राम भक्त और राम विरोधियों का टकराव न होता।
लवकुश को बाल्मीकि सा पालक न मिलता
सीताजी को पुनः वनवास न मिलता
राम और उनके पुत्रों का युद्ध न होता।
हनुमान जी जीवित देवता न होते
आज अयोध्या में राम का इतना भव्य मंदिर न होता
और तब अयोध्या अयोध्या नाम बन
इतनी भव्यता कभी न पाता
क्योंकि राम जी का तब इतना नाम भी न होता।
राम नाम जीवन मंत्र न बन जाता
एक नाम राम तारणहार न बन पाता
राम जी का नाम सदियों तक न चल पाता
और सबसे बड़ी बात जो आज हो रहा है
अयोध्या की नव भव्यता कभी सपने में न होती।
यमराज की बात सुन मैं भी स्तब्ध रह गया
क्योंकि इतना गहराई से मैं तो क्या
शायद अब तक किसी ने सपने में भी
किसी ने विचार तक न किया होगा।
मैंने यमराज को समझाया
इतनी दूर तक मत सोच भाया
बस यही बात खुद समझ और अपने चेलों को भी समझा
कि प्रश्न उचित पर बड़ा रहस्यमयी है,
इसीलिए आज तक किसी की समझ में आया नहीं है,
क्योंकि ये सब हम सबके प्रभु श्रीराम जी की माया है।
इसलिए कभी किसी ने ये सवाल नहीं उठाया है
फिर तेरे चेलों के मन में ये सवाल आज क्यों आया है?
प्रश्न तो ये भी है कि तेरे चेलों में ने
कहीं विपक्ष से रिश्वत लेकर
आज ये प्रश्न तो नहीं उठाया है?
और तब तू आकर मेरा सुख चैन छीनने का
इतना बड़ा दुस्साहस दिखाने की हिम्मत जुटा पाया है?
अच्छा होगा कि मैं आपे से बाहर हो जाऊं
अथवा राम जी का कोप तुझ पर गिर जाए,
तू चुपचाप यहां से निकल ले मेरे यमराज भाया,
वरना राम जी के कोट का शिकार हो जाएगा,
तू रावण भी नहीं जो तुझे मोक्ष मिल जाएगा।

सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश्

Language: Hindi
1 Like · 208 Views

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