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31 May 2024 · 1 min read

पीड़ा

सुबह सुबह – एक अबोध बालक – की लेखनी के पुष्प –

मेरी पीड़ा तेरी पीड़ा से कोई अलग तो नहीं ।
फिर तेरी पीड़ा का एहसास मुझको होता क्यूँ नहीं ।

तुझको भी बनाया उसी परवरदिगार ने ।
मुझको भी बनाया उसी खुदा ने प्यार में ।

बोल न सखी –

फिर तेरी पीड़ा का एहसास मुझको होता क्यूँ नहीं ?
मैं डूबा अपने स्वार्थ में , मैं खोया अपने लाभ के ख्वाब में

हर वक्त ये मिल जाए वो मिल जाए ।
इसके सिवा सारी दुनिया भाड़ में जाए ।

ये गलत के सही –
बोल न सखी –

फिर तेरी पीड़ा का एहसास मुझको होता क्यूँ नहीं ?

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