Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
26 Dec 2023 · 4 min read

मेरे प्रेम पत्र

मेरे प्यारे भारत देश,

तुम्हें पता है कि मैं और मेरे मित्र प्रेमलाल ईश्वर की कृपा से पढ़ लिख तो गए, परंतु उन दिनों दोनों बेरोजगार थे। सरकारी योजना के तहत हमें डेढ़ सौ रुपये बेरोजगारी भत्ता भी मिलता, जो चार छह माह में इकट्ठा एक बार मिलता, परंतु उसमें से भी 1 महीने की राशि तथाकथित जी द्वारा काट ली जाती कमीशन बतौर, ऊपर से एहसान कि जैसे स्वयं जेब से दे रहे हो। हीनता की भावना बुरी तरह से मन में घर कर दी जाती थी। हम दोनों मित्र अक्सर विचार करते कि शासकीय योजनाएं क्या किसी की बपौती हैं। परंतु उस दौर में शायद बपौती ही रही होंगी। सरकारी राशन की दुकान पर केरोसिन शक्कर एहसान सहित कम तुली हुआ मिलता रहा, तब लगता था कि शायद यही नियम हो, परंतु बाद में समझ आया कि लोकतंत्र में हम जिसे चुनते हैं, वही हमारा खून चूसता है या फिर यह कहूं कि खून चूसने का लाइसेंस प्राप्त कर लेता है।
विडंबना यही है कि इंसान उसी को पूछता है, पूजा है जो उसी का खून चूसता है, तभी तो हमारे समाज में नाग पूजा होती है सांड पूजे जाते हैं। आपने किसी गधे या केचुएं की पूजा होती नहीं देखी होगी। कई बार हम विरोध ना करके भी शोषण को बढ़ावा देते हैं। संकोच और व्यवहारिकता शायद व्यक्ति को विरोध करने से रोकती हैं, यही कारण है कि तथाकथित लोग स्वयं को चतुर और दूसरों को मूर्ख समझने लगते हैं।

हमने ही तुम को चुना था, दूसरों को दोष दें क्या।
जी बहुत करता मसल दें या कि मनमसोस दें क्या।
खा चुके हो कितना कुछ तुम रेत गिट्टी वन सभी।
भूख है तुमको अगर तो देश ही परोस दें क्या।।”

बचपन में सोचते थे कि मौका मिलेगा तो देश की सेवा में सहभागी बनेंगे और ईश्वर ने अवसर भी दिया।
तुम्हें पता है शिक्षा का उद्देश्य विषयगत शिक्षा से नहीं होता बल्कि व्यवहारिक और जीवन शैली में उत्तरोत्तर सुधार भी शिक्षा का अंग है।
मैं चाहता हूं कि भावी पीढ़ी अपने अधिकार को जाने और उन्हें प्राप्त ही करें। वह इस बात को समझें कि किसी का हक मारकर हम क्षणिक सुख को प्राप्त कर लेते हैं, परंतु इसका प्रभाव दूरगामी होता है। हमें अपने सामर्थ्य के अनुसार लोगों की मदद करनी चाहिए।
पद को पैसा कमाने का साधन ना बनाना है, ना ही बनने देना है। हम अक्सर कुएं को ही संसार समझ बैठते हैं। शोषित और लोक व्यवहार से ग्रसित लोगों पर सिक्का जमा कर स्वयं को महान समझ लेना मूर्खता है। कुएं के बाहर भी एक दुनिया हैं। रामलाल गांव के जन हितेषी छुटभैये हैं। उन्हें लगता है कि गांव में उनका बड़ा सम्मान और मान्यता है। किसी के घर में कोई मांगलिक या सामाजिक सार्वजनिक कार्यक्रम होता तो बिना रामलाल की सहमति के संभव ही नहीं होता था। यहां तक कि किस-किस को बुलाना है, किसको नहीं बुलाना। खाने में क्या-क्या बनवाना होगा यह सब रामलाल ही निर्धारित करते थे। ऐसा करते हुए उनके अंदर नेतृत्व की भावना और विशिष्टता का गर्व हिलोरे मारने लगता था। आयोजन के दौरान हर छोटी-बड़ी बात को बारीकी से देखते और प्रतिक्रिया भी देते तो उनका चेहरा देखने लायक होता है।
गांव के लोग भी आयोजन हो जाने तक गधे को बाप बनाए रखने की मजबूरी में फंसे रहते क्योंकि उन्हें पता था कि रामलाल बनाने से ज्यादा बिगाड़ने में विश्वास रखते थे। समय के साथ रामलाल का घमंड बढ़ना भी उचित ही था। ऐसे रामलाल सिर्फ एक दो जगह नहीं वरन सर्वव्यापी हैं इन्हें दूसरों की जीवन में दखल देने की लत होती है, जो स्वयं को सर्वश्रेष्ठ और सर्वमान्य समझ कर लोगों के कार्य बनाने की जगह बिगाड़ने में विश्वास रखते हैं। यह आदत समाज के लिए बहुत नुकसानदाई है। कोई व्यक्ति क्या करना चाहता है, किसे बुलाना चाहता है, किस से संबंध रखना चाहता है, इसके लिए स्वतंत्र होता है और उसे इसके लिए किसी रामलाल से पूछने की आवश्यकता नहीं होती। यह रामलाल तरह के छुटभैये समाज और देश के लिए बहुत हानिकारक हैं, जो बिना किसी वैधानिक अधिकार के समाज पर शासन करने का प्रयास करते हैं और समाज के कमजोर तबके के लोगों पर अपना वर्चस्व स्थापित करने का प्रयास करते हैं। कमजोर सामाजिक ढांचे के कारण सफल भी होते हैं। यह तो एक उदाहरण मात्र है दूसरों का हक मारना और स्वयं को उन पर थोपना कहीं ना कहीं सामाजिक शोषण और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है और जब यह आदत तथाकथित लोगों की आदत बन जाती है, तब समाज में भ्रष्टाचार के साथ-साथ असंतोष भी बढ़ता है। बचपन में जब शिक्षक भ्रष्टाचार पर निबंध लिखने को कहते हैं, तब भ्रष्टाचार को खत्म करने के उपाय लिखते समय मन में बड़ा उत्साह रहता कि हमारे द्वारा सुझाए गए उपायों से भ्रष्टाचार निश्चित की खत्म हो जाएगा। वर्तमान में जो जितना खा सकता है उतना ही लोकप्रिय और प्रभावी माना जाता है कहीं पढ़ा था कि चुनाव में अपना मत हमेशा ईमानदार व्यक्ति को देना चाहिए, परंतु आज हम अपने बच्चों को समझाते हैं कि अपना मत कम बेईमान व्यक्ति को दो। यह बात भी सच है कि भ्रष्टाचार को खत्म करना दो-चार व्यक्तियों के बस का काम नहीं, बल्कि इसके लिए पूरे समाज को आगे आना होगा। एक लंबे समय से एक विचार मन में घर किए हुए हैं कि एक समय ऐसा जरूर आएगा, जब इस देश का युवा अपनी पूरी क्षमता के साथ खड़ा होकर सिर्फ और सिर्फ भ्रष्टाचार के विरोध में आंदोलन करेगा और शायद वह पल समाज में भ्रष्टाचार के लिए अंतिम पल होगा।
होना यह चाहिए कि बिना किसी के हक को मारे हम अपने सामर्थ्य के अनुसार लोगों का भला करें। पद को पैसा कमाने का साधन ना बनाएं। अपने कुएं ही संसार ना समझें, कुएं से बाहर भी निकले क्योंकि उसके बाहर भी एक दुनिया हैं।
होना यह चाहिए कि दूसरों के व्यक्तिगत जीवन में दखल ना देते हुए व्यक्ति को स्वतंत्र जीवन निर्वहन में मददगार बनना चाहिए। सर्वे भवंतु सुखिनः

जय हिंद

Language: Hindi
179 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

व्यवस्था
व्यवस्था
Rashmi Sanjay
बेटी है हम हमें भी शान से जीने दो
बेटी है हम हमें भी शान से जीने दो
SHAMA PARVEEN
लाया था क्या साथ जो, ले जाऊँगा संग
लाया था क्या साथ जो, ले जाऊँगा संग
RAMESH SHARMA
अंधेरे में दिया जलाया
अंधेरे में दिया जलाया
Sunil Maheshwari
*मनः संवाद----*
*मनः संवाद----*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
"फितरत"
Dr. Kishan tandon kranti
कुछ दुःख होता है जिनसे आप कभी उभर नहीं पाते हैं ,
कुछ दुःख होता है जिनसे आप कभी उभर नहीं पाते हैं ,
Iamalpu9492
आप धार्मिक हैं तो
आप धार्मिक हैं तो
jogendar Singh
*जो सजे मेज पर फल हैं सब, चित्रों के जैसे लगते हैं (राधेश्या
*जो सजे मेज पर फल हैं सब, चित्रों के जैसे लगते हैं (राधेश्या
Ravi Prakash
फ़लक पर स्याह बादल आज गहरे हैं छाये
फ़लक पर स्याह बादल आज गहरे हैं छाये
Madhu Jhunjhunwala
कौन है ऐसा देशभक्त
कौन है ऐसा देशभक्त
gurudeenverma198
पानी की तस्वीर तो देखो
पानी की तस्वीर तो देखो
VINOD CHAUHAN
#ग़ज़ल-
#ग़ज़ल-
*प्रणय प्रभात*
ग़ज़ल...02
ग़ज़ल...02
आर.एस. 'प्रीतम'
कली
कली
PRATIBHA ARYA (प्रतिभा आर्य )
अंतहीन प्रश्न
अंतहीन प्रश्न
Shyam Sundar Subramanian
बाकी रह जाए याद में बाकी,
बाकी रह जाए याद में बाकी,
Dr fauzia Naseem shad
"बैठे हैं महफ़िल में इसी आस में वो,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
कोंपलें फिर फूटेंगी
कोंपलें फिर फूटेंगी
Saraswati Bajpai
बेटीयांँ
बेटीयांँ
Mansi Kadam
वजह बन
वजह बन
Mahetaru madhukar
हे राम! तुम्हें शिरसा प्रणाम
हे राम! तुम्हें शिरसा प्रणाम
अभिषेक पाण्डेय 'अभि ’
एक साथ मिल बैठ जो ,
एक साथ मिल बैठ जो ,
sushil sarna
"मुश्किलों के आगे मंजिलें हैं ll
पूर्वार्थ
रामदीन की शादी
रामदीन की शादी
Satish Srijan
कीमत
कीमत
Ashwani Kumar Jaiswal
ग़ज़ल होती है
ग़ज़ल होती है
Anis Shah
सारे निशां मिटा देते हैं।
सारे निशां मिटा देते हैं।
Taj Mohammad
World Hypertension Day
World Hypertension Day
Tushar Jagawat
मौसम किसका गुलाम रहा है कभी
मौसम किसका गुलाम रहा है कभी
नूरफातिमा खातून नूरी
Loading...