बेजुबाँ सा है इश्क़ मेरा,
मेरी माँ "हिंदी" अति आहत
Rekha Sharma "मंजुलाहृदय"
मेरी निजी जुबान है, हिन्दी ही दोस्तों
लइका ल लगव नही जवान तै खाले मलाई
द्वार खुले, कारागार कक्ष की
ओ अच्छा मुस्कराती है वो फिर से रोने के बाद /लवकुश यादव "अज़ल"
पुस्तक समीक्षा- धूप के कतरे (ग़ज़ल संग्रह डॉ घनश्याम परिश्रमी नेपाल)
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
करके RJD से हलाला फिर BJP से निकाह कर लिया।
दुनिया को पता है कि हम कुंवारे हैं,
मुहब्बत से दामन , तेरा भर रही है ,
करूँ तो क्या करूँ मैं भी ,