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22 Dec 2023 · 2 min read

धरती पर स्वर्ग

लघुकथा

धरती पर स्वर्ग
“नमस्कार अंकल जी।” लड़के वालों के घर पहली बार आए मिस्टर और मिसेज शर्मा ने घर के मुख्य द्वार पर व्हील चेयर में बैठे बुजुर्ग सज्जन आत्माराम, जो कि लड़के के दादाजी थे, से हाथ जोड़कर कहा।
“खुश रहो बेटा, जीते रहो। आओ, आओ। आप लोगों को कोई परेशानी तो नहीं हुई, हमारा घर ढूँढ़ने में ?” उन्होंने औपचारिकतावश पूछा।
“ना जी चाचाजी। रमेश भाई साहब ने डिटेल एड्रेस भेज दिया था, साथ ही मोबाइल में लोकेशन भी। इसलिए हम सीधे आपके घर पहुंच गए। कहीं कुछ भी पूछने की जरूरत ही नहीं पड़ी।” शर्मा जी ने रमेश जी की ओर ईशारा करते हुए कहा।
बातें करते-करते वे सभी ड्राइंग रूम में पहुंच गए। चाय-नास्ता भी आ गया। लड़का डॉ. संजय, जिसे देखने के लिए शर्मा जी का पूरा परिवार वहाँ आया था, वह अपने हॉस्पिटल ड्यूटी से लौटा नहीं था। उसने कुछ ही समय पहले फोन करके घर में बता दिया था, कि एक अर्जेंट एक्सीडेंट केस की वजह से उसे आने में थोड़ी देर हो सकती है।महज पंद्रह-बीस मिनट की बातचीत में ही शर्मा जी समझ गए कि उस परिवार में आत्माराम जी की चलती है। उनकी बात ही अंतिम होती है। उनके बेटे, बहू, पोती सब लोग उन्हें बहुत इज्ज्त देते हैं। अस्सी साल पार कर चुके आत्माराम जी साफ-सुथरे प्रसन्न और संतुष्ट दिख रहे थे।
शर्मा जी बोले, “अंकल जी, हमें ये रिश्ता मंजूर है।”
आत्माराम जी चकित होकर बोले, “पर बेटा, अभी तो आप लोगों ने मेरे पोते संजय को देखा ही नहीं है। फिर इतना बड़ा डिसीजन…”
शर्मा जी बोले, “अंकल जी, जिसे आपके पोते के साथ जीवन बितानी है, उसने तो उनके साथ ही पढ़ाई की है। दोनों एक-दूसरे को पसंद भी करते हैं। हमने आपको देख लिया। आपके परिवार वालों से मिल लिया। आज के युग में जिस परिवार में बुजुर्ग मुखिया इतना प्रसन्न दिखें, वह स्वर्ग से कम नहीं। हमें विश्वास हो गया है कि हमारी बेटी इस परिवार का हिस्सा बन कर बहुत खुश रहेगी।”
आत्माराम जी हँसते हुए अपनी पोती से बोले, “तो इस खुशी में मिठाई तो बनती ही है बेटा।”
“बिल्कुल दादा जी, पर आपके लिए सुगर फ्री वाली रहेगी।” वह बोली।
आत्माराम जी मजकिया अंदाज में बोले, “बस, ये लड़की ही कुछ स्ट्रीक्ट रहती है मेरे साथ। कॉलेज में लेक्चरार है न। मुझसे भी अपने स्टूडेंट्स टाइप बिहेव करती है।”
सब लोग ठहाके मारकर हँसने लगे। मिस्टर और मिसेज शर्मा अपने जिगर के टुकड़े के लिए स्वर्ग से सुंदर घर पाकर निहाल हो गए थे।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़

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