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28 Oct 2023 · 1 min read

*हम नदी के दो किनारे*

हम नदी के दो किनारे
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हम नदी के दो किनारे,
बहते नीर के हम सहारे।

कभी मिल भी ना पायें,
फांसले दरमियां हमारे।

दूरियाँ ही हैँ हमने पाई,
एक दूसरे को हैँ निहारें।

देखते रहते मन टिकाये,
आती जाती सब बहारें।

कोई आये मेल कराये,
मिल जाएं प्रेम फुहारें।

दर आओ हम संभाले,
नाम ले कर हम पुकारें।

खोये खोये कहीं सोये,
ख्वाब जो हमारे तुम्हारे।

बन गये हैँ धरती अंबर,
गवाह सारे चाँद सितारे।

बांहों में रूप मनसीरत,
आन मिलो जरा निखारें।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

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