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29 Sep 2023 · 1 min read

*****श्राद्ध कर्म*****

छोड़ आये लोक वो अपना
भूले बिसरे रिश्ते निभाने
रह गई कोई आस अधूरी
आये उसको अपना बनाने।

क्षुधा उनकी अब तृप्त करें
अंजुनी में थोड़ा जल भरें
पिंडदान और तर्पण करना
पूर्वजों को यूँ तुष्ट करना।

लौट जायेंगे अपनी दुनियाँ
समेट कर कुछ थोड़ी खुशियाँ
क्षण भर ही सही याद करना
नाम लेकर तुम कर्म करना।

जौ,तिल, नीर,कुशा को हस्त ले
जलांजलि फिर अर्पित करना
स्मृति में श्राद्धकर्म सारा
उनको तुम समर्पित करना।

पाकर अन्न,जल अल्प सा ही
दे जायेंगे आशीष सारा
मनाकर पितरों को यूँ ही
सँवर जायेगा जीवन हमारा।

✍️”कविता चौहान”
स्वरचित एवं मौलिक

1 Like · 463 Views
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