जीवन सूखे बंजर हो गए,

जीवन सूखे बंजर हो गए,
कांटे बढकर खंजर हो गए।
चुभे हृदय में शूल
वो दिन कैसे जाऊं भूल।
कही सहायक नहीं है अपने,
भूल गए आंखो के सपने ।
सब कल्पना के फूल,
वो दिन कैसे जाऊँ भूल ।
पतझड छोड़ पतंगे उडते
सूखे पत्ते में कैसे रहते।
उडती है अब धूल
वो दिन कैसे जाऊँ भूल ।।
#विन्ध्य प्रकाश मिश्र ‘विप्र’