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31 May 2023 · 2 min read

प्रेम का अंधा उड़ान✍️✍️

प्रेम का अंधा उड़ान

🌵🌵🌵🌵🌵🌵🌵🌵

अंतः मन की भावों से
आई एक मधुर आवाज ?

महा भागे !तेरे बिना मैं बेकार
जब से तू मन मंदिर में आई

पाने की चाह में तुम्हें
छोड़ दिया सब माई .भाई

दिल दिमाग अब तू ही छाई
तेरी प्रेम दीवानगी देख

बेचैन हुई घबराई पछताई
कैसी मुसीबत पाली मैं

सपनों की सेज सजाया
मंजिल सफर के कांटों से

स्वप्न नीड़ ख्वाबों की बगिया
कसर ना छोड़ी प्यार खातिर

तुझे अपना बनाने को
चलो चलें आजमाते अब

दामन चुनरी लहराने को
पता नहीं आगे क्या होगा

जाकर तेरे घर आंगन में
पर वहां बैठी वो बाजीगर

ना जाने क्या क्या ठानी है
बाजी किसकी पलट जाए

उनकी इस पर निगरानी है
ताने वाने से पग पग मुझे

रुलाने और सताने को
ना बाबा ना जाऊंगी कभी

तेरा घर बसाने को ?
वचन दे मुझे परिजन छोड़

अन्यत्र अपना घर बनाने को
अंधा प्रेमी हो बैचेन घबराया

लड़खड़ाया बोला अलग हो
जाओ मां मुझे संगिनी रखनी

वस इतनी छोटी सी बात
नाजों से तुझे पाला मैंने

एक कली फूलों की तरह
विलंब ना कर बेटा ला संगिनी

छोड़ी स्वर्ग सुंदर अपनी नीड़
तेरी सपनों की उड़ान भरने को

चला हर्षित पागल प्रेमी दिवाना
अपनी की हुई वादा सुनाने को

चलो संगिनी अपने घर चलो
अपना स्वप्न संसार बनाने को

जड़ा तमाचा बोली प्रेमिका
अक्ल के मोटे खोटे हो तू

अंधे अज्ञानी पर गामी हो
प्रेम दीवानी मस्तानी हूं

पर .अंधी नहीं बडी श्यानी हूं
तनिक जांच से तुझे पहचानी

हुआ नहीं अपनी मां का
मेरा क्या तू होएगा ???

जानी नहीं प्रेमी अंधे संग
जीवन तिमिर कपूत बसेरे में

चली मैं तो चली सपूत के उस
प्यार प्रकाश पुंज आशियानें में

अब तू काटो जिंदगी अपनी
खानावदोस मयखाने पैमाने में

हे ! जग के प्रेम दीवानों ?
सुलझा जीवन उलझाना नहीं

प्रेमी तो आनी जानी है
पर मॉ नहीं दोवारा मिलनी है

ममता प्यार करुणा दया अधिकार
अमर है मां का दूध कर्ज है तेरे पर

पूरा कर यहीं ऋणमुक्त हो जाना
इसे भूलकर भी नहीं भूलाना

💛🌻🌻💛🌻🌻💛🌻🌻💛

कविः –
तारकेश्वर प्रसाद तरूण

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