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7 Jun 2023 · 1 min read

पड़ोसी

कलम चलती रही मेरी,
संगीनों के साए में।
स्याह करती रही पन्नो को,
जिस पर मैने”अमन” लिखा था।
कफ़न लपेटे मेरे भाई बहन,
आंगन में लेटे थे,
बाहर बारूद का शोर होता था।
बढ़ाए हाथ उनकी ओर,
कि वो हमनशी होंगे।
दरों दीवार की बंदिशों से,
गमगीन होंगे।
मिलाते हाथ ही,
उनकी मुस्कुराहटों ने बताया था।
सारी कायनात का छल,
उनकी आंखों में छलछलाया था।
बांटे जो मोहब्बत,
उसकी जमीं बांटने चले आए।
सरहदों को लांघ कर,
हमारे सिर ही काटने चले आए।
हमारे सुख से दुखी,
दुख में हंसने वाला
हितैषी नही,दुश्मन ही होता है।
सजग रहना,
कभी कभी आज़ाद घरोंदों को,
पड़ोसियों का खौफ रहता है।

Language: Hindi
1 Like · 113 Views
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