Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
7 Dec 2022 · 3 min read

1971 में आरंभ हुई थी अनूठी त्रैमासिक पत्रिका “शिक्षा और प्रबंध”

1971 में आरंभ हुई थी अनूठी त्रैमासिक पत्रिका “शिक्षा और प्रबंध”
_______________________________________
उत्तर प्रदेश के अशासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों के प्रबंधकों की ओर से एक पत्रिका 1971 में शुरू हुई थी। नाम था “शिक्षा और प्रबंध”। यह त्रैमासिक पत्रिका थी । जिन दिनों यह पत्रिका निकलती थी, उन दिनों भी इसके अंको को पढ़ने का अवसर मुझे मिलता था और मैं उन्हें पढ़ता भी था। पिताजी के पास यह पत्रिका आती थी । लगभग 32 पृष्ठ की इस पत्रिका का प्रत्येक अंक निकलता था । यह अपने आप में छोटी-मोटी किताब होती है।
पत्रिका के 1986-87 के कुछ अंकों को मैंने दोबारा देखा । इन पर संपादक मंडल में तीन नाम लिखे हुए हैं ः-श्री केदारनाथ गुप्त, श्री नरोत्तम दास अग्रवाल और श्री सत्येंद्र नाथ सिन्हा । कार्यालय का पता 4, कटरा रोड ,इलाहाबाद लिखा गया था। यह प्रकाशक श्री नरोत्तम दास अग्रवाल का भी पता था । पत्रिका इलाहाबाद शिक्षण संस्था प्रबंधक संघ का मुख्-पत्र थी तथा उत्तर प्रदेश विद्यालय प्रबंधक महासभा की वृहद योजना तथा विचारधारा का एक अभिन्न अंग थी। 1992 93 में “संपादक मंडल” के स्थान पर प्रधान संपादक के रूप में श्री बद्री प्रसाद केसरवानी , प्रबंध संपादक के रूप में श्री नरोत्तम दास अग्रवाल तथा सह संपादक के रूप में श्री सत्येंद्र नाथ सिन्हा का नाम लिखकर आने लगा।1986-87 में पत्रिका का वार्षिक शुल्क ₹15 था। 1993 के अंत में वार्षिक मूल्य ₹30 लिखा हुआ दिखाई पड़ता है।
पत्रिका का उद्देश्य जैसा कि नाम से ही स्पष्ट हो रहा है ,शिक्षा संस्थाओं का सुचारू प्रबंध सुनिश्चित करना था। इसके लिए पत्रिका में विचार-प्रधान लेख तथा अनेक प्रकार के सुझाव आदि प्रकाशित होते रहते थे। लेकिन पत्रिका अपने कलेवर में ज्यादातर सामग्री उन समस्याओं से निबटने में लगाती थी जो उसे सरकार की ओर से अवरोध के रूप में प्राप्त होते थे । इस तरह शिक्षा और प्रबंध एक प्रकार से सरकार और प्रबंधकों के बीच के झगड़ों में प्रबंधकों का पक्ष बन कर रह गई । रोजाना सरकार की ओर से प्रबंधकों के रास्ते में बाधाएँ उत्पन्न की जाती थीं तथा “शिक्षा और प्रबंध” उन बाधाओं की आलोचना तथा उनके निराकरण के लिए अपने विचार व्यक्त करती थी । यह सब समय तथा संसाधनों की एक प्रकार से बर्बादी ही कही जा सकती है । होना तो यह चाहिए था कि “शिक्षा और प्रबंध” को सरकार से सकारात्मक और अनुकूल वातावरण मिलता तथा प्रबंधकों द्वारा संचालित शिक्षा संस्थाओं को सहज रूप से उन्नति की ओर ले जाने के लिए योजनाओं पर विचार-विमर्श इस मंच के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता । लेकिन हुआ यह कि ” शिक्षा और प्रबंध” प्रबंधकों की उन समस्याओं में घिर कर रह गई जो उसके सामने सरकार ने प्रस्तुत कर दी थीं।
इस तरह 1970-71 से सरकार के साथ खींचातानी का प्रबंधकों का जो इतिहास रहा, उसी का एक स्वर “शिक्षा और प्रबंध” त्रैमासिक पत्रिका के अंकों के अवलोकन से हमें देखने को मिलता है। 1971 से आरंभ हुई इस त्रैमासिक पत्रिका का सरकार के साथ संघर्ष इस मुद्दे पर लगातार बढ़ता गया कि सरकार प्रबंधकों के अधिकारों में निरंतर कटौती करती गई ।
मार्च 1987 के अंक में पत्रिका को अपने 32 पृष्ठ के अंक के मुखपत्र पर शासन को यह लिखना पड़ा “हमारे अधिकार वापस करो या अपने स्कूल खोल कर हमारे भवन छोड़ो” । स्पष्ट रूप से इस प्रकार के संघर्षों में शक्ति के अपव्यय के साथ न कोई संस्था काम कर सकती है ,न पत्रिका ,न व्यक्ति और न ही समाज । एक दिन सरकार से लड़ते-लड़ते “शिक्षा और प्रबंध” परिदृश्य से ओझल हो गई । यह एक पत्रिका का शैक्षिक परिदृश्य से चला जाना मात्र नहीं था । यह सामाजिकता के विचारों का अशासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों के प्रबंध की विचारधारा से लुप्त हो जाना भी था ।
“शिक्षा और प्रबंध” पत्रिका के 1971 में आरंभ को आधी सदी बीत गई । परिदृश्य में बहुत से अनुभव विद्यालय प्रबंधकों के, सरकार के तथा शिक्षक संघों के भी नए-नए प्रकार से हुए होंगे । अगर उनका समावेश करते हुए इस प्रकार की व्यवस्था कायम की जाए जिसमें शिक्षकों के शोषण और उत्पीड़न की गुंजाइश भी न रहे तथा विद्यालय-प्रबंध में प्रबंधकों की प्रभावकारी भूमिका भी सुनिश्चित हो सके ,तो 50 वर्ष पूर्व आरंभ किए गए “शिक्षा और प्रबंध” पत्रिका के उच्च आदर्शों को पूरा करने में संभवतः सफलता मिल सकेगी। समाज में सच्चरित्र ,ईमानदार तथा उत्साह की ऊर्जा से भरे हुए लोग विद्यालय खोलने और चलाने के लिए प्रयत्नशील हों तथा उन्हें इसके लिए अनुकूल प्रोत्साहन तथा वातावरण उपलब्ध हो ,यह किसी भी समाज का लक्ष्य होना ही चाहिए।
————————————————–
लेखक :
रवि प्रकाश पुत्र श्री राम प्रकाश सर्राफ बाजार सर्राफा ,रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

328 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ravi Prakash
View all

You may also like these posts

*खो गया  है प्यार,पर कोई गिला नहीं*
*खो गया है प्यार,पर कोई गिला नहीं*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
222. प्रेम करना भी इबादत है।
222. प्रेम करना भी इबादत है।
मधुसूदन गौतम
जिंदगी और मौत (कविता)
जिंदगी और मौत (कविता)
Indu Singh
क्या? किसी का भी सगा, कभी हुआ ज़माना है।
क्या? किसी का भी सगा, कभी हुआ ज़माना है।
Neelam Sharma
धर्म का पाखंड
धर्म का पाखंड
पूर्वार्थ
जो सबका हों जाए, वह हम नहीं
जो सबका हों जाए, वह हम नहीं
Chandra Kanta Shaw
🌹थम जा जिन्दगी🌹
🌹थम जा जिन्दगी🌹
Dr .Shweta sood 'Madhu'
कलम सी है वो..
कलम सी है वो..
Akash RC Sharma
हर मनुष्य के अंदर नेतृत्व की भावना होनी चाहिए।
हर मनुष्य के अंदर नेतृत्व की भावना होनी चाहिए।
Ajit Kumar "Karn"
"और बताओ"
Madhu Gupta "अपराजिता"
तन्हाई में अपनी परछाई से भी डर लगता है,
तन्हाई में अपनी परछाई से भी डर लगता है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
जो कर्म किए तूने उनसे घबराया है।
जो कर्म किए तूने उनसे घबराया है।
सत्य कुमार प्रेमी
- तेरी मोहब्बत ने हमको सेलिब्रेटी बना दिया -
- तेरी मोहब्बत ने हमको सेलिब्रेटी बना दिया -
bharat gehlot
**विश्वास की लौ**
**विश्वास की लौ**
Dhananjay Kumar
3827.💐 *पूर्णिका* 💐
3827.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
जय गणेश देवा
जय गणेश देवा
Santosh kumar Miri
सपने सुहाने
सपने सुहाने
Mrs PUSHPA SHARMA {पुष्पा शर्मा अपराजिता}
बड़े ही खुश रहते हो
बड़े ही खुश रहते हो
VINOD CHAUHAN
किस जरूरत को दबाऊ किस को पूरा कर लू
किस जरूरत को दबाऊ किस को पूरा कर लू
शेखर सिंह
प्रसिद्ध मैथिली साहित्यकार आ कवि पं. त्रिलोचन झा (बेतिया चम्पारण जिला )
प्रसिद्ध मैथिली साहित्यकार आ कवि पं. त्रिलोचन झा (बेतिया चम्पारण जिला )
श्रीहर्ष आचार्य
🙅राष्ट्र-हित में🙅
🙅राष्ट्र-हित में🙅
*प्रणय प्रभात*
परिचर्चा (शिक्षक दिवस, 5 सितंबर पर विशेष)
परिचर्चा (शिक्षक दिवस, 5 सितंबर पर विशेष)
डॉ. उमेशचन्द्र सिरसवारी
लपवून गुलाब देणारा व्यक्ती आता सगळ्यांसमोर आपल्या साठी गजरा
लपवून गुलाब देणारा व्यक्ती आता सगळ्यांसमोर आपल्या साठी गजरा
Kanchan Alok Malu
इक झलक देखी थी हमने वो अदा कुछ और है ।
इक झलक देखी थी हमने वो अदा कुछ और है ।
Jyoti Shrivastava(ज्योटी श्रीवास्तव)
Nhà cái 009 từ lâu đã trở thành điểm đến hấp dẫn cho nhiều n
Nhà cái 009 từ lâu đã trở thành điểm đến hấp dẫn cho nhiều n
Truong
मैंने बहुत कोशिश की,
मैंने बहुत कोशिश की,
पूर्वार्थ देव
मैं अपना यौवन देता हूँ !
मैं अपना यौवन देता हूँ !
पाण्डेय चिदानन्द "चिद्रूप"
दोहावली
दोहावली
आर.एस. 'प्रीतम'
बाळक थ्हारौ बायणी, न जाणूं कोइ रीत।
बाळक थ्हारौ बायणी, न जाणूं कोइ रीत।
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
आखिर क्यों सबको भरमाया।
आखिर क्यों सबको भरमाया।
अनुराग दीक्षित
Loading...