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30 Oct 2022 · 1 min read

दीवाली पर छंद

१२२२ १२२२ १२२२ १२२२ | सजल | विधाता छंद
पुरातन धर्म का भी मर्म बतलाती है दीवाली
हमें है प्रेम से रहना ये सिखलाती है दीवाली

कहीं हमने गरीबों को यहां बांटा कभी जो प्रेम
यहां फिर तब गरीबी में भी मुस्काती है दीवाली

दिया जब प्रेम का हम भी जलाते हैं यहां घर में
जमाने के ॲंधेरे को यूॅं बिसराती है दीवाली

हमें मिलजुल के यह ख़ुशियां मनाना भी सिखाती है
अमावस भी घरों में रोशनी लाती है दिवाली

रहें हम स्वस्थ तन मन से, शिवा अब इस जमाने में
ख़ुशी सबके घरों तक ख़ूब पहुंचाती है दीवाली

©अभिषेक श्रीवास्तव ‘शिवाजी’
अनूपपुर मध्यप्रदेश

1 Like · 314 Views
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