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16 Jul 2022 · 1 min read

ह्रदय की व्यथा

कुछ दिन हो चले हैं, कुछ बातैं हो रही हैं।

कहीं साजिशें हो रही है , कहीं मुलाकातें हो रही है।

कोई गुम है अपनी मस्ती में , कोई सलाहें ले रहा हैं।

कोई अनजाने में गलतियां करके , किस किस की बुरी बलायें ले रहा है।

कोई महफिलों में खुश है , तो कोई तन्हाइयों का लुत्फ़ उठाता हैं।

कोई जिंदगी के लिए रोता है , कोई जिंदगी पे रोता है।

कोई रातों को जगता है, उसकी यादों के करवट में।

किसी की रातें ही गुम हैं , ना बिस्तर है न सिलवट है।

किसी की बात को सुनने को , कतारें इन्तेहाँ करती है।

किसी के पास अब बातें नहीं है , खुद को सुनाने को।

सभी रिश्तों ने मुँह मोड़ा,

की अब वो वक़्त आया है, ज़िन्दगी घडी से भी छोटी लगने लगी।

ये वक़्त कम्बख्त बेवक़्त आया हैं।

फिरा करते थे जिन रिश्तों को सर का ताज बना क़र के।

वही रिश्ते है मायूस , बिना बात के बात बना कर के।

“आखिरी लफ्ज़ है ये मेरा , ज़रा गौर से सुनना ..”

चलो अब मैं भी चलता हूँ अपने शब्दों के ये आखिरी जाल बिछा कर के

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