जी करता है मै पूंछ ही लूं इन नियम के ठेकेदारों से
जी करता है मै पूंछ ही लूं इन नियम के ठेकेदारों से
जो तय करते कुछ मानक हैं बेटी के जीवन जीने के
इक हूक सी उठती है मन में जब नियम बताये जाते हैं
बतला दे कोई मुझको है नियम कहां ये लिखे हुए
हमने तो सुना जब मां दुर्गा का महिषासुर ने अपमान किया
तो कर डाला मर्दन उसका और जग में पूजी जाती हैं
ना कभी कहीं हमने है पढ़ा
बेटी को सहना पड़ता है उसको चुप रहना पड़ता है
फिर भी बोलो क्यूं सबने बेटी की चुप्पी को बेहतर माना है
है रीत गलत सब ये जग की हमको मनमानी बेमानी सी लगती है
यदि बेटी छेड़ी जाती है तो गलती बेटी की सब कहते हैं
कोई पहनावा गलत बताता है तो कोई कहता चाल चलन ही ठीक न था
इक प्रश्न हृदय में उठ है रहा अब पूंछ ही लूं इन सबसे है
आज तीन चार वर्ष की बेटी की जब अस्मत लुटती है
क्या पहनावा उसका ठीक न था क्या चाल चलन की ठीक न थी
बतलायें ये ठेकेदार मुझे अब और क्या नियम बतायेंगे
क्या उन छोटी कन्याओं को साड़ी चुनरी पहनाएंगे
बतला दो दो चार नियम तुम जाकर अपने बेटों को
कुछ लाज शर्म जीने के नियम जाकर बतलाओ उनको भी
यदि नियम सिखाने हैं तुमको दोनो को नियम सिखाओ ना
दोनो को ही मर्यादित रहना सिखलाओ ना
स्वरचित
स्वर्णिम तिवारी