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20 Oct 2021 · 1 min read

आज़ाद गज़ल

महफिल और मुशायरों की बात मत कर
मतलबपरस्ती में माहिरों की बात मत कर
जो करतें हैं मंचो पे मुहब्बत की नुमाईश
बुज़दिल ज़हीन शायरों की बात मत कर।
हुस्नोईश्क़ की जो करतें हैं ज़िक्र गज़लों में
आशिक़ मिज़ाज कायरों की बात मत कर।
मूंद कर आँखें डूबे रहते हैं जो आशिक़ी में
सिमटते हूए उनके दायरों की बात मत कर।
हक़ीक़त कहने में जो हिचकिचातें हैं यारों
ऐसे बे-अदब रंगे सियारों की बात मत कर
बड़े ही खुदगर्ज नामाकूल हो अजय तुम भी
बस अपनी कह, हजारों की बात मत कर ।
-अजय प्रसाद

1 Like · 211 Views

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