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22 Aug 2024 · 1 min read

आज कल इबादते इसी कर रहे है जिसमे सिर्फ जरूरतों का जिक्र है औ

आज कल इबादते इसी कर रहे है जिसमे सिर्फ जरूरतों का जिक्र है और कुछ नही कभी कभी
उसके दर में जाकर एक इबादत ऐसी भी..
जिसमें ज़िक्र जरूरतों का ना हो. बस सुकून शांति की नियति हो इबादत में। हर वक्त भिखारी बनकर जाना भक्त की आड़ में सही नही है। कभी सिर्फ भक्त बनकर उसके ऊर्जा को अपने मन और शरीर में सहेजने जाया करो अपनी आत्मा को शुद्ध करने जाया करो। मंदिर है माल नही वो भगवान का दर के दुकान नही वो।

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