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18 Feb 2024 · 1 min read

दीप जलते रहें - दीपक नीलपदम्

दीप जलते रहें अनवरत-अनवरत

आओ सौगंध लें, आओ लें आज व्रत ।

दीप ऐसे जलें, न अन्धेरा रहे

शाम हो न कभी, बस सवेरा रहे,

रौशनी की कड़ी से कड़ी सब जुड़ें

रौशनी प्यार की बिखरी हो हर तरफ ।

दीप जलते रहें अनवरत-अनवरत

आओ सौगंध लें, आओ लें आज व्रत ।

दीप ऐसे जलें सूख आँसू चलें,

आशा उम्मीद की चंद साँसें चलें,

आशंका न हो उस तरफ होगा क्या,

उस तरफ चल पड़ें, हम रहें बेधड़क ।

दीप जलते रहें अनवरत-अनवरत

आओ सौगंध लें, आओ लें आज व्रत ।

दीप ऐसे जलें कोई तो हँस पड़े,

साथ में हो खड़े वक़्त उल्टा पड़े,

दें दिलासा कि हम साथ में है तेरे,

चल पड़ो तुम उधर, जाये तेरी सड़क ।

दीप जलते रहें अनवरत-अनवरत

आओ सौगंध लें, आओ लें आज व्रत ।

(c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव ” नील पदम् “

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