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20 May 2021 · 2 min read

“बादल”

सुबह से ही मौसम बेहतर है वो इसलिए क्योंकि पिछले कितने दिनों से तेज़ धूप और दहकती गर्म उमस थी मौसम अलसाया सा प्रतीत होता था अंदर से और बाहर से भी पता नहीं बादल कब बरसेंगे अगर एक आध बार भी बरस जायें तो अंदर बाहर सब शीतल हो जाये क्योंकि एक लंबे अंतराल के बाद पर रही तपिस को शांत करने हेतु बादल का और शायद आंखों का बरसना ज़रुरी है।मौसम बदलते हैं इंसान की प्रवृति भी यहीं दोनों का प्राकृतिक नियम है इतने दिनों से लगता है लोगों के मध्य रहकर भी बीहड़ में
रह रहे हैं शायद ये सब भीड़ भाड़ और झूठी ज़िन्दगी मुझे पसंद नहीं और इन सबको मैं भी प्रायःएक दूसरे की पसंद होने के लिए कुशल व्यक्तित्व और जीने की कला का होना लाज़िमी है पर शायद वो दोनों में ही नहीं लगता है सब थोथला झूठा जीवन जीते हैं एक बदलाव की आवश्यकता है मुझमें या सब में पर सबको नहीं बदला जा सकता।
कोई विश्वास पात्र नहीं कैसी का भी शायद मैं भी नहीं लगता है सबके संग मैंने भी बदलाव स्थिति को ग्रहण कर लिया है।कुछ अच्छी प्रवृति के सभ्य लोग भी है पर मुझसे कोसो दूर है घर में सब शिष्ट हैं सभ्य है यह समझना और होना ज़रुरी भी है पर कस्बाई भागती दौड़ती ज़िन्दगी में सब भीड़ में अकेले हैं इसी से सब और तपिश है गर्म है दहक रहे हैं लोग शायद मैं भी तभी किसी ऐसी तेज़ बारिश की ज़रुरत है जो एक नया रंग उकेर दे अभी भी तपिस में अनमने से सब जी रहे है पर क्या जीते हैं सब पर हंसी ही आती है वही कुत्सित दिनचर्या किसी में कोई उमंग नहीं बस जीते हैं फिर भी सब अपने लिए पर बरसात से कुछ बदलाव अवश्य होगा जैसे अक्श्रु बहने से आंखों की कलिष दूर होती है और शीतलता आती है बादल घिर आये बस आज यही लगता है आज कुछ नया हो ही जाए।

मनोज शर्मा

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