23/77.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
आज फिर हाथों में गुलाल रह गया
हाथों में हाथ लेकर मिलिए ज़रा
बढ़ती इच्छाएं ही फिजूल खर्च को जन्म देती है।
*पीड़ा ही संसार की सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है*
*जाने कब अब उन से कुर्बत होगी*
एक दूसरे से उलझकर जो बात नहीं बन पाता,
यदि कार्य में निरंतरता बनीं रहती है
ख़्वाब ख़्वाब ही रह गया,
अजहर अली (An Explorer of Life)
किसी के मर जाने पर उतना नहीं रोया करता
होली के रंग
Sandhya Chaturvedi(काव्यसंध्या)
एक दूजे के जब हम नहीं हो सके
"डिजिटल दुनिया! खो गए हैं हम.. इस डिजिटल दुनिया के मोह में,