आज़ाद गज़ल
चांद मुझ पे झल्ला गया
छत पे जब मैं भी आ गया ।
ज़ुल्फें क्या सहेज दी मैनें
बादलों को गुस्सा आ गया ।
शाम मुहँ फुलाकर बैठी है
उनसे मिलकर जो आगया ।
तारे तिलमिला कर रह गए
मेरे चेह्रे पे नूर जो आ गया ।
फूल भी सारे फफक पड़े
काटों को जब मैं भा गया ।
महफिल मुश्किल में आगई
अजय तू जब भी छा गया ।
-अजय प्रसाद