आज़ाद गज़ल
दिल में रहते थे वो किराए के मकां जैसे
भला मुझ को फ़िर समझते अपना कैसे ।
इल्म ही नहीं क्यों बिक गए मेहबूब मेरे
इश्क़ में हुआ इस्तेमाल मेरा दुकां जैसे ।
राख कर दिया मुझे उसने अपने जलवो से
जला के कोयले को निकला है धुआँ जैसे।
उसकी नफ़रतों का भी मैं कायल हो गया
पता नहीं फ़िसल गया था मेरी जबां कैसे ।
न आग,न धुआँ और न कोई चराग ही है
फ़िर भला जल गया मेरा ये आशियां कैसे।
-अजय प्रसाद