आज़ाद गज़ल
मुहब्बत की मुश्किलें और कितना बढ़ाएगा
तारीफों के लिए चार चांद कहाँ से लगाएगा ।
अपने पैरों पे तो ठिक से अभी खड़ा हुआ नहीं
महबूबा के लिए चांद तारे कैसे तोड़ लाएगा ।
बात करता है जो तू ज़माने से टकराने की
अबे हौसला तू भला क्या इतना कर पाएगा।
एक ज़िंदगी में रिश्ते संभाले नहीं जाते यहाँ
सातों जनम तू क्या खाक साथ निभाएगा।
छोड़ दे अजय कसमे,वादे प्यार वफ़ा की बातें
आंखे मूंदते ही तू पूरी दुनिया को भूल जाएगा।
-अजय प्रसाद