आज़ाद गज़ल
सदियों से ही अपनी मंजिल की तलाश में हूँ
दलितों,पीड़ितों और शोषित के लिबास में हूँ ।
ज़िक्र मेरी भला कोई करे क्योंकर ग्रंथो में
कहाँ नज़रो के ,सूर,तुलसी या कालिदास में हूँ।
हर दौर दगा दे गई दिलासा दिला कर मुझे
बस ज़रुरत के मुताबिक मैं उनके पास में हूँ ।
रोज़ लड़ता हूँ लड़खड़ा कर जंग ज़िंदगी से
मुसीबतों के महफ़ूज साया-ए-उदास में हूँ ।
कभी तो अहमियत मिलेगी मेरी गज़लों को
अजय उसी महफिल-ए-ग़ज़ल की तलाश में हूँ
-अजय प्रसाद