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3 May 2020 · 1 min read

आह्वान

असमंजस में विषम दशाएं
पैदा करती हैं दुविधाएं
द्विमुखी सर्प की भांति
चहुंओर लगाए घातें।
मन: समर्पण का अपकर्षण
चित्रित करती हैं
मन के दर्पण पर।
चंचलताओं से सजे अश्व पर
रोहण करती मर्यादाओं की पतवार
उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम
आकाश – धरा
ऊर्जा का संचार भरा।
नवनिहित पृष्ठभूमि अविसिंचित करती
भविष्य धरोहर की ये संतान
निरीह बना, भयभीत लगूं
प्राण पखेरू उड़ ना जाएं।
काल चक्र का चक्र बड़ा है
जीवन मृत्यु के मध्य खड़ा है
तभी उसे ये समझ पड़ा है
कि
असमंजस में विषम दशाएं
पैदा करती हैं दुविधाएं।

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